मनरेगा के तहत मिलने वाले काम के दिनों को बढ़ाकर 200 दिन किया जाएँ.

एक लोककल्याणकारी और लोकतांत्रिक राज्य की सफलता का आकलन इस आधार पर किया जाता है कि उसने सामाजिक-आर्थिक रुप से पिछड़े व्यक्ति को किस प्रकार संबल प्रदान किया है. वास्तव में देखा जायें तो मनरेगा योजना को सच्चे अर्थों में सामाजिक-आर्थिक प्रगति के वाहक के रूप में देखा जा सकता है. वैसे ग्रामीण भारत को ‘श्रम की गरिमा’ से परिचित कराने वाली यह मनरेगा योजना विश्व की सबसे बड़ी सामाजिक कल्याणकारी योजना है, जो प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों 100 दिन का रोज़गार उपलब्ध करवाती है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि सूखाग्रस्त क्षेत्र और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है. लेकिन साथियो इस वक्त मुद्दे की बात यह है कि इस कोरोना महामारी के दौर में करोड़ों मजदूर शहरों से गांवों की तरफ़ वापिस लौट गये है और उनके लिये बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो चुकी है. जिस गाँव मे पहले कभी 50 लोग मनरेगा में काम करते थे, आज उसी गाँव में 300 लोगों की मनरेगा में काम की डिमांड आ रही है.
देश मे लॉकडाउन और कोरोना महामारी के कारण दिहाड़ी मजदूर, लघु सीमांत किसान, कृषि श्रमिक और निर्माण श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. साथ मे कई राज्यों में भारी बारिश और टिड्डियों के हमले के कारण किसानों की फसल खराब हो चुकी है. ऐसे संकटकाल में ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों और किसानों को आर्थिक संबल प्रदान करने का सर्वोत्तम उपाय कोई है तो वो मनरेगा योजना ही है. इसलिये आप सभी साथियों को आप सभी साथियों को ग्रामीण भारत के लोगों के हक में आवाज बुलंद करते हुए सरकार से माँग करनी चाहिए कि मनरेगा के तहत मिलने वाले काम के दिनों को बढ़ाकर 200 दिन किया जाएं और इसके तहत मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी को भी 400 रुपया या 500 रुपया प्रतिदिन किया जाएँ.
(अर्जुन महर दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ के स्टूडेंट है और वामपंथी छात्र संगठन AISA से जुड़े हुए है. साथ में दो किताबें भी लिख चुके है)
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