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राजस्थान में कांग्रेस की सरकार अशोक गहलोत या सचिन पायलेट की वजह से नहीं बल्कि इस वजह से आयी थी.?

जब भी कोई मुझसे पूछता है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार किसकी वजह से बनी तो मेरा सीधा सा जवाब होता है - “जिन्हें लगता है कि राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में गहलोत या पायलेट की वजह से आयी थी, उन्हें एक बार विधानसभा चुनावों के आँकड़े निकाल लेने चाहिए…! राजस्थान में कांग्रेस किसानों, पूर्वी राजस्थान के लोगों, भाजपा के कुशासन और ST-SC-मुस्लिम वोट के दम पर सत्ता में आयी थी..! बस सचिन पायलेट की वजह से कांग्रेस को कुछ जगह यह फ़ायदा हुआ कि जिस जगह भाजपा का प्रत्याशी गुर्जर नहीं था वहाँ सचिन पायलेट की वजह से गुर्जर समुदाय का वोट कांग्रेस को मिला था..!”

(Photo: Twitter/Rahul Gandhi)



वास्तविकता यह है :-


1. पूर्वी राजस्थान के सवाईमाधोपुर, दौसा, करौली, भरतपुर, टोंक, बाँरा, धौलपुर, अलवर जैसे ज़िलों में लगभग 39 सीटों में से भाजपा को सिर्फ़ 4 सीट पर सफलता मिली थी..! साथ में राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर और सीकर जैसे ज़िलों में भाजपा का खाता नहीं खुला था..! इन्हीं क्षेत्रों और यहाँ के लोगों की वजह से कांग्रेस की सरकार बनी, वरना भाजपा वापिस सत्ता में आती..!


(2018 राजस्थान विधान सभा चुनाव परिणाम)


2. इसके अलावा 2 अप्रेल के ST-SC आंदोलन के बाद ST-SC समुदाय भाजपा से इस कदर नाराज़ था कि इन्होंने अपने ही समुदाय के भाजपा से सम्बंधित कई नेताओं को चुनाव हरवा दिए थे..! मीणा समुदाय ने अपने ही समुदाय के दिग्गज नेता डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के चार टिकट हरवा दिए..! सवाईमाधोपुर से खुद मीणा प्रत्याशी को मीणाओं ने हराया था..! पूर्वी राजस्थान में कई ग़ैर-आरक्षित सीटों पर और सिर्फ़ ST-SC-Minority वोट की वजह से निर्दलियों ने जीत दर्ज की..! यदि ST-SC भी जातिवाद करते और सिर्फ़ अपने ही समुदाय के लोगों को वोट देते तो पूर्वी राजस्थान की कई सीटों पर भाजपा ज़रूर चुनाव जीत कर जाती..!


3. जिस तरह से ST-SC ने अपने समुदाय के भाजपा उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया था..! क्या ठीक वैसे ही गुर्जर समुदाय ने किया था..? यदि आप निष्पक्षता से जवाब देंगे तो आपको जवाब मिलेगा- नहीं..?


4. बाक़ी जो लोग कांग्रेस की जीत का श्रेय सचिन या अशोक को देते है, वो उन समुदाय के वोट बैंक को नकार देते है; जिन्होंने दिल से कांग्रेस को वोट दिया था..!


5. कोई बुरा माने तो माने वास्तविकता यह है कि सचिन पायलेट की पूरी छवि मीडिया और उनकी IT सेल टीम द्वारा ठीक उसी तरह क्रीएट की गयी है, जैसे 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी की गयी थी..! मेरे कई परिचित सचिन की टीम में काम करते है, इसलिए सच्चाई से वाक़िफ़ हूँ कि कैसे 2017 से सचिन को राजस्थान का नेता बनाने की कोशिश की गयी थी..! सचिन पायलेट अंग्रेज़ी बोलने वाले अच्छे वक्ता है, कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बीच अच्छी लॉबी है और स्मार्ट है लेकिन संघर्षशील नहीं है..! पिछले 9 वर्षों में एक भी ऐसा आंदोलन बता दीजिए, जो उन्होंने किरोड़ी लाल मीणा की तरफ़ ख़ुद के दम पर खड़ा किया हो..! 2018 से पहले कांग्रेस के जीतने भी आंदोलन होते थे वो PCC के दम पर नहीं बल्कि अशोक चांदना के नेतृत्व वाली Youth Congress के दम पर होते थे..! बस कुछ लोग एक लाठी खाने वाली तस्वीर को अक्सर घुमाते रहते है, उससे ज़्यादा लाठियाँ तो विपक्ष में रहते हुए अभी भाजपा के सतीश पुनिया खा चुके है..! वास्तविकता यह है कि पिछले 4 वर्षों में सचिन जनहित के मुद्दों से ज़्यादा तो मुख्यमंत्री पद के लिए बोले है..!

6. अगर देखा जाएँ तो मुख्यमंत्री पद यदि संघर्ष के दम पर दिया जाएँ तो फिर तो भाजपा की तरफ़ से डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, थर्ड फ़्रंट की तरफ़ से हनुमान बेनिवाल नज़र आते है और कांग्रेस की तरफ़ से कोई नहीं..! वोट बैंक के आधार पर मुख्यमंत्री बनाना है तो सबसे पहले नम्बर आदिवासी, दलित, मुस्लिम और जाट समुदाय का आना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस का स्थायी वोट बैंक तो यही है..!


7. बाक़ी जो लोग कहते है कि सचिन पायलेट सच्चे कांग्रेसी है..! उनसे उतना ही कहूँगा कि मानेसर में बस थोड़ा सा संख्याबल कम पड़ गया, वरना सिंधिया की तरह दल बदलते टाइम नहीं लगता..!


8. ये तो जाट, मीणा और दलित नेता तो थैला उठाने, दरी बिछाने, चापलूसी करने और आपसी फूट की वजह से रह गये; वरना मुख्यमंत्री तो 2018 में इन्हीं समुदायों से बनता और यह भी हो सकता था कि राजस्थान को पहली बार कोई जाट और मीणा मुख्यमंत्री भी मिलता..!


9. अब भी कोई आदिवासी, दलित और जाट मुख्यमंत्री बन सकता है लेकिन इन समुदायों के नेताओं में वो इच्छा शक्ति नहीं है, जो सचिन पायलेट में है..! राजनीति में सबकुछ इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है और मैं सचिन पायलेट की इसी इच्छा शक्ति का क़ायल हूँ..!


10. बाक़ी अंत में यही कहूँगा कि मीणा मुख्यमंत्री को जाट-दलित-मुस्लिम स्वीकार कर लेंगे और जाट-गुर्जर-दलित -मुस्लिम मुख्यमंत्री को मीणा स्वीकार कर लेंगे..! लेकिन एक बार गुर्जरों से पूछ लो कि वो सचिन पायलेट के अलावा किसी और को मुख्यमंत्री स्वीकार करेंगे या नहीं..?


नाराज़ होने वाले नाराज़ होते रहो लेकिन कड़वी सच्चाई यही है..! जोहार..!


~ अर्जुन महर



(अर्जुन महर दिल्ली विश्वविद्यालय में लॉ के स्टूडेंट है और वामपंथी छात्र संगठन AISA से जुड़े हुए है. साथ में दो किताबें भी लिख चुके है)

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